Organic Farming : जीवामृत कैसे तैयार करें ? – जीवामृत पारंपरिक भारतीय जैव कीटनाशक
जीवामृत के अनेक लाभ किसान के खेती को बनाते है समृद्ध !
जैविक खेती में आवश्यक आदानों का उत्पादन अपने खेत या गांव में ही किया जा सकता है. इनमें से जीवामृत का उपयोग जैविक खेती में किया जाता है. कम्पोस्ट के प्रयोग से मिट्टी में बहुत बढ़ जाती है जीवाणुओं की संख्या
दिन-ब-दिन मिट्टी की उर्वरता (Soil Fertility) कम होती जा रही है. कीट और रोगों (Pest and Diseases) का प्रकोप बढ़ रहा है और बीज, उर्वरक, कीटनाशकों की बढ़ती लागत के साथ आय और व्यय मेल नहीं खाते हैं. प्रायः उत्पादन की लागत अधिक होती है और उससे होने वाली आय कम होती है.
रासायनिक खाद पर खर्च अधिक होता है. उसके विकल्प के रूप में यदि हम जैविक खाद (Organic Fertilizers) का प्रयोग करें तो उत्पादन लागत भी बचती है.
जैविक खेती में आवश्यक आदानों का उत्पादन अपने खेत या गांव में ही किया जा सकता है. इनमें से जीवामृत का उपयोग जैविक खेती में किया जाता है.
जैसे-जैसे बैक्टीरिया की संख्या बढ़ती है, हवा से अवशोषित नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती जाती है. फसलों के लिए नाइट्रोजन और अन्य पूरक पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. इसलिए, सब्जी की वृद्धि जोरदार हो जाती है. फसल जोरदार, जोरदार और स्वस्थ दिखाई देती है.
जीवामृत कैसे करे तैयार ?
जीवामृत तैयार करने के लिए 200 लीटर क्षमता के प्लास्टिक बैरल या टैंक में 170 लीटर साफ पानी लें. 10 किलो गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 2 किलो काला गुड़, 2 किलो बेसन, 2 किलो बैक्टीरिया वाली मिट्टी या 100 ग्राम उपलब्ध खाद को मिला लें.
10 से 15 मिनट के लिए रोजाना 2 से 3 बार बाएं से दाएं हिलाएं. जीवामृत 7 दिनों में फसलों को देने के लिए तैयार हो जाता है। 200 लीटर प्रति एकड़ पर्याप्त है. यदि अधिक क्षेत्र है तो बैरलों की संख्या बढ़ानी चाहिए. अथवा एक हजार लीटर क्षमता की टंकियों में उपरोक्त मात्रा से पांच गुना अधिक मात्रा में बनाकर मिश्रण तैयार करें.
गोमूत्र की उपलब्धता अधिक होने पर पानी की मात्रा कम कर देनी चाहिए. जीवामृत तैयार करने के लिए किसान अलग-अलग मात्रा में सामग्री का इस्तेमाल करते हैं. उस उपाय को रखने के दिन भी अलग-अलग होते हैं. लेकिन उपरोक्त सामग्रियां न्यूनतम और उचित मात्रा में हैं.
जीवामृत के गुण क्या हैं ?
उत्तम जीवामृत का रंग लाल से काला होता है. इसमें 3 से 6 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है.
जीवामृत की सतह लगभग अम्लीय है. लाभकारी सूक्ष्मजीवों की विभिन्न प्रजातियों के विकास के लिए उपास्थि एक उत्कृष्ट खाद्य स्रोत है.
मृत शरीर में सूक्ष्मजीव हवा से नाइट्रोजन को अवशोषित करते हैं, जिससे हवा में कार्बन से नाइट्रोजन का अनुपात कम हो जाता है.
तरल रूप में होने से बैक्टीरिया की संख्या और जीवित रहने का समय बढ़ जाता है. जीवामृत का प्रयोग अधिकतम 30 दिनों के भीतर कर लेना चाहिए.