कपास पर आयात शुल्क बढ़ा दिया जाए तो बढ सकती है किमते ??

बाजार में अपेक्षित मूल्य नहीं मिलने से किसानों ने कपास बेचना बंद कर दिया है. दूसरी ओर कपड़ा उद्योग कम कीमत पर कपास चाहते हैं. कपास की कीमतें पिछले साल रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई थीं. सीजन के अंत तक यह रेट 12 हजार से 13 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था. किसानों ने खरीफ सीजन में बड़े पैमाने पर कपास की बुआई की क्योंकि इस साल भी उन्हें अच्छी कीमत मिलेगी. लेकिन इस साल जनवरी बीतने के बावजूद कपास को सही कीमत नहीं मिली है. कपास उत्पादक कम से कम 10,000 रुपये की कीमत की उम्मीद कर रहे हैं. किसान कपास निर्यात के लिए आयात शुल्क और सब्सिडी बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.                                                                                                                        कपास पर आयात शुल्क बढ़ा दिया जाए तो बढ सकती है किमते ??

क्या है टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज की डिमांड

उद्योगों ने 11 फीसदी आयात शुल्क खत्म करने की मांग की है. उद्योगों की प्रमुख मांगों में कपास, धागे और कपड़े पर शुल्क कम करना और निर्यात के लिए सब्सिडी, करघे और कपड़ा मिलों के लिए सब्सिडी शामिल है. जानकारों का कहना है कि इंपोर्ट ड्यूटी खत्म करने की मांग किसानों के हित के खिलाफ है. देश के बाजार में फिलहाल कपास की कीमतों में कमी आई है. कपास बाजार में 11 फीसदी आयात शुल्क के बावजूद यह स्थिति है. इस साल कपास का उत्पादन घटा है और उत्पादन लागत काफी बढ़ गई है.

क्या हैं किसानों की उम्मीदें !

कपास की अच्छी कीमत पाने के लिए आयात शुल्क बढ़ाना जरूरी है. किसान देश से कपास, सूत और कपड़ा निर्यात के लिए सब्सिडी और कर में छूट की भी मांग कर रहे हैं. जानकारों का कहना है कि अगर देश से सूत और कपड़े का निर्यात बढ़ता है तो इससे किसानों को अच्छी कीमत मिलने में मदद मिलेगी. एक क्विंटल कपास की कीमत साढ़े चार हजार रुपये पड़ी है. किसान कपास बेचने से परहेज कर रहे हैं. इसलिए बाजार भी ठप है. वर्तमान में कपास 8400 रुपए प्रति क्विंटल तक की दर मिल रही है. लेकिन उम्मीद है कि किसानों को पिछले सीजन की तरह 9 से 10 हजार रुपए रेट मिलेगा.

क्या कहते हैं कृषि विशेषज्ञ !

आज कपास की दर 1994-95 की दर से कम है. 1995 में अमेरिकी कपास बाजार में एक पाउंड कपास की कीमत एक डॉलर और दस सेंट थी. आज यह दर केवल एक डॉलर है. उस समय भारतीय कपास 2,500 से 2,700 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा था. उस वर्ष कपास का गारंटीकृत मूल्य मात्र 1200 रुपये था. लेकिन डॉलर की विनिमय दर केवल 32 रुपये थी. आज भारतीय कपास उत्पादकों को 8000 से 8500 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है. भारतीय डॉलर की विनिमय दर 82 रुपये हो गई है. इसके पीछे का कारण रुपये का अवमूल्यन है. कृषि विशेषज्ञ विजय जावंधिया ने विचार व्यक्त किया है कि कपास उत्पादकों को अच्छा लाभ प्राप्त करने के लिए कपास की गांठों का निर्यात करने की आवश्यकता है.

आयात शुल्क में वृद्धि के कारण !

देश में कपास की कीमतों में गिरावट के बाद निर्यात की मांग बढ़ी है. वर्तमान में बांग्लादेश से भारतीय कपास की मांग है. निर्यातकों का कहना है कि अगर कपास की मौजूदा कीमतें कायम रहती हैं तो दूसरे देशों से भी मांग आने की संभावना है. दाम घटने के बाद किसानों ने कपास की बिक्री घटा दी है. नतीजतन, अंतर्वाह गिर जाता है और उद्योगों को अधिक कपास नहीं मिलता है. ऐसे में देश के किसानों को बेहतर कीमत दिलाने के लिए आयात शुल्क बढ़ाने की जरूरत है. किसान देश से कपास, सूत और कपड़ा निर्यात करने के लिए सब्सिडी और कर में छूट की भी मांग कर रहे हैं.

कपास बाजार की मौजूदा स्थिति क्या है?

बाजार में कपास की आवक कम है. कीमतों में बढ़ोतरी की उम्मीद में किसानों ने कपास बेचना बंद कर दिया है. नतीजतन, कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि घरेलू बाजार में एक लाख से एक लाख 10 हजार गांठ ही मिल रही है. महाराष्ट्र में भी सिर्फ 25 फीसदी प्रोसेसिंग वर्कर ही कॉटन जिनिंग प्रोफेशनल्स तक पहुंच पाए हैं. कपड़ा उद्योग कम कीमत पर कपास चाहते हैं. सीएआई ने शुरुआत में 344 लाख गांठ, फिर 339 लाख गांठ और अब 330 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान लगाया है.