Animal Breeding Act : गाय-भैंस प्रजनन अधिनियम !

Animal Breeding Act : गाय-भैंस प्रजनन अधिनियम !

क्या है कानून की जरुरत, दुग्ध उत्पादन पर क्या रहेगा कानून का प्रभाव संपूर्ण जाणकारी !

Milk Production Update: आज हम दुग्ध उत्पादन में विश्व में अग्रणी स्थान पर है. लेकिन दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के इस सफर में हमें यह अहसास होने लगा है कि अनजाने में हमने कई पहलुओं की उपेक्षा की है. हर कोई अनुभव से सीखता है. पशुपालन और डेयरी उद्योग में बहुत से परिवर्तन हो रहे हैं. पशुपालन भी इन बदलावों से वाकिफ नजर आ रहा है.

दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं. इनमें ‘प्रजनन’ सबसे महत्वपूर्ण और सबसे दूरगामी है. इसके लिए अनादिकाल से प्रयास होते रहे हैं.

प्रारंभ में प्राकृतिक निषेचन के बाद तरल शुक्राणु के उपयोग के बाद इन विट्रो निषेचन, लिंग-पृथक शुक्राणु और भ्रूण स्थानांतरण और अब हम इन विट्रो निषेचन और भ्रूण स्थानांतरण जैसी नई तकनीकों के साथ आगे बढ़ रहे हैं.

इन सबके पहले क्लोनिंग भी शुरू हो चुकी है. अब लक्ष्य सिर्फ दुग्ध उत्पादन बढ़ाना नहीं है, बल्कि एंटीजन पर दुग्ध उत्पादन बढ़ाना बहुत जरूरी हो गया है. इसलिए हम प्राकृतिक संयोजन से बाहरी निषेचन और भ्रूण प्रत्यारोपण, क्लोनिंग तक पहुंच गए हैं. उस वक्त इन सभी प्रक्रियाओं में कई बातें सामने आई थीं.

कृत्रिम गर्भाधान पशुपालन के दरवाजे पर उपलब्ध सबसे सुविधाजनक और उपयोग में आसान जैव प्रौद्योगिकी में से एक है. इसमें पूरी तरह से विकसित मादा के गर्भाशय में बैल के वीर्य का कृत्रिम प्लेसमेंट होता है और इस तरह गर्भाधान होता है.

हालांकि यह पढ़ने में आसान लगता है, लेकिन यह एक बायोटेक्नोलॉजी है. उन्होंने निश्चित रूप से देश, महाराष्ट्र में डेयरी उद्योग में क्रांति ला दी है. मार्च 2023 के अंत तक महाराष्ट्र में कुल कृत्रिम गर्भाधान 22,71,638 तक पहुंच गया है.

इसमें जेके ट्रस्ट, बीआईएफ, निजी सेवा प्रदाताओं, धर्मार्थ संगठनों, सहकारी दुग्ध संघों सहित राज्य में पशुपालन विभाग और अन्य संगठनों के माध्यम से 16,34,630 ने 6,37,008 कृत्रिम गर्भाधान किया है. परिणामस्वरूप कुल 2,35,682 बछड़ों का जन्म हुआ है. इसमें प्राकृतिक संयोग के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं. राज्यों में कृत्रिम गर्भाधान से बड़ी संख्या में बछड़े पैदा किए जाते हैं.

वर्ष 2021-22 के दौरान पशुपालन विभाग की हिमीकृत रेत प्रयोगशालाओं में कुल 14,36,930 टन रेत का उत्पादन किया गया है. लेकिन अन्य संगठनों द्वारा उत्पादित रेत का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.

गायों और भैंसों की समग्र उत्पादकता बढ़ाने के लिए, उच्च वंशावली, बहुत स्वस्थ और उच्च गुणवत्ता वाले बैल वीर्य की उपलब्धता के साथ-साथ कृत्रिम गर्भाधान तकनीक में प्रशिक्षण, प्रयोगशालाओं, संस्थानों की पंजीकरण प्रक्रिया और वीर्य उत्पादन के लिए आवश्यक समान बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता वीर्य की मात्रा, भंडारण और वितरण की विधि और बिक्री की व्यवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. महत्वपूर्ण बातें हैं.

राज्य में, रेटमात्रा का उत्पादन और वितरण राज्य में पशुपालन विभाग की गोठी रेतमात्रा प्रयोगशाला, पुणे, छत्रपति संभाजीनगर, नागपुर और जेके ट्रस्ट, बीएआईएफ, एनडीडीबी, चितले भीलवाड़ी और राहुरी में कृषि प्रयोगशालाओं के विश्वविद्यालय से किया जाता है. लेकिन आज हम सुनते हैं. कि राज्य में कई तरह से रेत का उत्पादन और बिक्री होती है.

इस पर किसी का कोई नियंत्रण होता नजर नहीं आ रहा है.
नतीजतन, इस तरह के अवैध, नकली वीर्य से न केवल दूध उत्पादन में वृद्धि होती है, बल्कि जिन सांडों से वीर्य का उत्पादन होता है, वे ब्रुसेलोसिस, लार खुजली, गोजातीय वायरल डायरिया, ट्राइकोमोनिएसिस, संक्रामक गोजातीय राइनोट्रेकाइटिस जैसे गंभीर संक्रामक रोग फैलाने के लिए प्रवण होते हैं. यह जानवरों में बाँझपन पैदा कर सकता है.
दूध का उत्पादन घटता है. रोटी पशुओं को पाल सकती है.

इन्हीं सब बातों पर काबू पाने के लिए राज्य ‘गोजाती प्रजनन अधिनियम’ लेकर आया है. जिससे इन सभी उत्पादन केंद्रों पर इसकी डिजाइन, बालू की मात्रा उत्पादन, भंडारण, वितरण के साथ-साथ उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले सांडों के स्वास्थ्य और वंशावली जैसे सभी पहलुओं को दर्ज कर नियंत्रित किया जाएगा.

जिससे राज्य के सभी पशुपालकों को उनके झुंड में गायों और भैंसों के उत्पादन के अनुसार वीर्य की पहुंच हो सके. साथ ही इस कानून द्वारा यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वास्तविक कृत्रिम गर्भाधान कार्य में शामिल होने वाली मंडलियों को भी उनकी शिक्षा के स्तर के अनुसार प्रशिक्षित किया जाए.

साथ ही इन सभी मामलों में अगर इस कानून का उल्लंघन होता है तो इसमें सजा का भी प्रावधान किया गया है. यदि इस कानून का सही ढंग से क्रियान्वयन किया जाता है तो निश्चित रूप से महाराष्ट्र राज्य दुग्ध उत्पादन में अव्वल होगा. पंजाब में यह कानून 2016 से लागू है.

Animal Breeding Act
Animal Breeding Act

परिणामस्वरूप राज्य दूध उत्पादन के साथ-साथ प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता में प्रथम स्थान पर है. हम अपने राज्य में डेढ़ करोड़ के रेडे मवेशी देखते हैं. वह कीमत उससे उत्पादित रेत की मात्रा है.

इस कानून की सफलता पर विचार करने में कोई समस्या नहीं है कि पशुपालक स्वयं उच्च आनुवंशिक क्षमता वाली ऐसी गायों और भैंसों का उत्पादन करते देखे जाते हैं. इसलिए यह उम्मीद करने में कोई हर्ज नहीं है कि हमारे राज्य में यह कानून जल्द ही पारित हो जाएगा. इसके साथ ही केरल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु राज्यों में भी विचारों का आदान-प्रदान जारी है.

इस अधिनियम के तहत, कुछ स्थानों पर जमातियों द्वारा प्राकृतिक संभोग यानी गाँवों से बैलों को पालने के माध्यम से अपनी गायों और भैंसों में गर्भावस्था को प्रेरित करने के संबंध में भी एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए. इससे पहले दूरस्थ क्षेत्रों में जहां सरकार के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा उपलब्ध नहीं है, प्राकृतिक मेटिंग के लिए सांडों को पालने के लिए प्रोत्साहन भत्ते के रूप में ख्वाती सब्सिडी दी जाती थी. लेकिन फिलहाल यह देखना होगा कि इस कानून के तहत इसे किस तरह शामिल किया जाता है.

मवेशी प्रजनक महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ और दौड़ने वाले सांडों की शारीरिक विशेषताओं के बारे में बहुत जागरूक हैं.
ऐसे सांडों का उत्पादन करते समय, नस्ल प्रेमी पशुपालक कई कारकों पर विचार करते हैं और ऐसे दौड़ने वाले सांडों का चयन करते हैं और इस तरह प्राकृतिक संयोजन बनाकर ऐसे बछड़ों का उत्पादन करते हैं. वे प्रशिक्षित और दौड़ रहे हैं.

इसलिए यदि हम राज्य में बैलगाड़ी दौड़ का बुखार देखें और इस संबंध में सरकार का रवैया देखें तो हमें इस संबंध में एक निश्चित नीति बनानी होगी. ऐसे उत्तम कानून से यदि प्रदेश में उच्च वंश की पीढ़ी बनेगी तो सभी को लाभ होगा. सभी पशुपालकों को पर्याप्त मात्रा में रेत मिलेगी. इसमें कोई शक नहीं है कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा होने से पंजाब जैसे पशुपालकों के साथ देश के पशु मेले में करोड़ों, डेढ करोड़ बैल हिस्सा लेंगे और इससे दूध उत्पादन भी बढ़ेगा.